Wednesday, December 19, 2012

इक मुलाक़ात सोंधी सी....

मेरी बेचैन नसों में
क्या दौड़ रहा है...
तुम्हें मालूम हो तो..
मुझे बता देना..
स्पर्श ने तुम्हारे..
अनजाना,अनबूझा सा..
जो साज़ छेड़ा था...
बनके राज़..
मेरी बेजान नसों को..
वो जगा गया
अँधेरे कमरे के..
कोने पे बैठे तुम...
अपना उजाला...
मुझपे उढ़ेल गए
मैं किनारे पे खड़ी..
संवेदनहीन शिला सी..
भीगती रही..
उफनती , उतरती ...
लहरों से तुम्हारी..
कहो न मुझसे..
बोलो ना
ये जो महक रही है..
मुझमें...
वो सोंधी सी गंध...
तुम्हारी तो नहीं....?