Wednesday, February 22, 2017


                                       

न नौकरी बापू की , न माँ का श्रृंगार…
न धुले हुए चेहरे , न फूलों वाली फ्रॉक…
न साइकिल ,न झूले , न चटपटे स्वाद…
हर फूल गुलिस्तां का सरताज़ नहीं होता…
बचपन खिलौनों का मोहताज़ नहीं होता…
- लवीना रस्तोगी
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