Friday, August 9, 2013

ख्वाजा मेरे ख्वाजा

मेरे गुनाह कभी मेरी नेकी से बड़े थे...
वर्ना तेरे दर पर रहमतों की कमी न थी 

घर से चला था तो थे और सूरत ऐ हालत ...
दर से तेरे चला तो मेरी शख्सियत और थी 

लब न खुले तलक न जुबां हिली मेरी ...
तूने दिया वो भी जो दर्खास्त मेरी न थी 

शिकवे इस जहाँ से होते थे तब तलक...
रहमत ऐ नूर से जब मुलाकात मेरी न थी
 

Thursday, August 8, 2013

तेरा आना तक नागवार गुज़रा.....
तेरे इंतज़ार से कुछ यूँ मुहब्बत की हमने.......