Monday, December 16, 2019

है बात एक रात की ... बस कल सभी को जाना है उम्र गुज़रेगी भरम में कब तलक एक दिन तो समझ आना है । उलझनें ये मेरी ... मुझ ही को तो सुलझानी हैं निग़ाह मोड़ लूं कुछ देर तो क्या ये बेमानी है ...। हज़ारों रंगों से सींचा जिस मिट्टी को आज उसमें सफेद फूल आते हैं सोचता हूँ ये भी ठीक ही है रंग दुनिया को मुबारक मुझे ये सादे फूल ही भाते हैं । खुद ही को ढूंढने को ... बा'सबब ये उम्र मिली सफर ये अंदर का है और आप महफिलें सजाते हैं । @ लवीना रस्तोगी
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