
दौर ए वक़्त ऐसा भी हमने देखा
समन्दरों को साहिलों से बचते देखा
जंग गैरों से होती , तो ताज मेरा था
शिकस्त पे अपनी , अपनों को हँसते देखा
डूबता जान मुझे जो तमाशबीन हुए
बेबसी पे अपनी उन्हें हाथ मलते देखा
बाहें फैलाये नया आसमा बुलाता है मुझे
यूँ तो बहुतों को मिटटी में मिलते देखा..!!
2 comments:
amazing :)
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