
झूमती है चितवन मेरी....
पीती हूँ वादियाँ..
मैं आजकल...
बस्ती की गंदगी भी..
अटखेलियाँ करती है..
चूम लेती हूँ
मैले गाल भी....
रिसती रही हूँ ..
खुद में..
मैं बन के .. 'तुम'
अब कौन जाने..
'अक्स' किसका है ..
..आईने में..!!
कौन हूँ मैं…? एक कवियित्री , एक लेखिका ,एक दार्शिनिक या सिर्फ एक संवेदनशील मन …पता नहीं , पर कुछ तो है जो मुझे औरों से जुदा करता है …जान लूँ खुद को फिर बता दूंगी।